Friday, 3 March 2017

                                 “मन-समाज-बिकश”
                         (sree DEBASISH DASGUPTA )
मै लंबे समय तक अनेक इंसान को अच्छासे अध्धायन करके कुछ निर्णय लिए – इस धरती पे समस्त प्राणी को समय की साथ जो परीबर्तन होता उसके बड़ा अंश निर्भर करता उहि प्राणिके मानसिक मांग-सोच-बिचार के ऊपर- मन के ऊपर।। उदारहन के हिसाब से-हमलोग अक्सर बोलता हु,देख— उह देखनेमे डॉक्टर जैसा,शिक्षक जैसा,चोर जैसा,हमलोग तो कोही चित्र इया नक्सा देखके बोलता नेही,लेकिन जो जिस क्षेत्र पे काम करता उसके सोच-बिचार-भाबना और मानसिक चिंता ओहि इंसान के चेहेरे पे शरीर के गठन पे प्रकट होने लागता,परीबर्तन आने लागता॥
लेकिन किउ ऐसे होता? जब एही प्रश्न मन मे आनेलगा तो मै  देखा उहि सब इंसान अपना मन को जीने की जरूरत के दिशा मे चालित कीयथा-जो निर्देशन बाहक चुनब (Directional Selection) के लिए उनके अंदर स्वार्थपर जिन (Selfish gene) सही समय पर मन के जरूरत की अनुसार परिबर्तन मे सहायता किया ॥
 फिर हमलोग जब कोही मनुष्य के बंश के बारे मे चर्चा करताहू तब उनके बंश के कोही प्रशिद्ध-इया बुरा पुर्बज की द्रीष्टांत देतहु। डाक्टर-शिक्षक-नेता-अभिनेता के लिए कोही नया जिन होता नेही-लेकिन हमलोग देखा पुर्बज के भीतर एही सब गुनके असर अनेबला पीड़ी पर परता। किउ? किउ की ओहि समय से ही **“जैबबिकश (Organic Evolution) शुरू होने लगाता। और बादमे उहि सब दोष-गुण जिन के  (Dominant Gene) ऊपर प्रभाब डालता,और अनुकरण होने लागता (Adaptation),प्रारम्भ होता नया जिनकी॥ और एहीसे ही शुरू होता इंसान (प्राणी)के शरीर-मस्तिष्क-बुद्धि की बिकाशमे परिबर्तन॥“**
 मैंने देखा एक धनी परिबार के सन्तान किशोर अबस्था तक शुख भोग किया तब उसके शुन्दर चेहेरा,और जब उनके परिबार के खाराप समय आया तब उसके शरीर के गठन मे परिबर्तन अनेलागे-धीरेधीरे उनके चिंता-काम-काज की अनुसार, हातपायरके चमरा,रंग मे भी परिबर्तन होने लगा॥ फिर इसके उल्टा असर हुया एक गरीब परिबारके संतान जब इंजीनीयर बना तब। बुरा साथीसे मिलने लगा एक शिक्षित युबा,--गलत उपाय से धनी बना,--शुशील लेडका बास कांटरकटर बना,तब सब के अंदर परिबर्तन आने लगे। मैने अनेक दोस्त, रिसतेदार को भी अद्धायन करके देखा एही सब परिबर्तन होता सब के जीने के लिए चिंता-रास्ता के सन्धान और मनमे आयाहुया स्थायी भाबना के लिए।    [ निर्देशन चुनाब (Directional Selection) के लिए। ]
 मैने ईसीके आधार पर देखा- आज हमलोग सोचताहु हर “मनुष्य”एक है और इसके आधार पर आधुनिक समाज गठन किये—लेकिन भूप्रकिती,जीने के लिए सोच(life style),भाबना,चिंता-मनके चाहत सब के अलग अलग,(Directional Selection)
 उदारहन के लिए पहाड़ी तोता और समतल की तोता के खाने मे, चलन मे,ब्याबहार मे अनेक फराक है Evolution and Adaptation के लिए॥ अगर एही मानके देखे तो मनुष्य भी भिन्न भिन्न होता।
(1)   कठिन प्रकृति (2) नरम प्रकृति (3) संयुक्त प्रकृति।।  कठिन प्रकृति-- परिश्रमी,और शरीर मे शक्ति जादा,भाबुक कम होता। नरम प्रकृति—सरल जीबनयात्रा,सरल आहार,सहनशील होता। संयुक्त प्रकृति—दोनों गुण के अधिकारी होता॥ अगर ध्यान से बिचार करू तो प्रिथीबी के हर देश,-हर प्रांत के हर भिन्यता के अनुसार भाग करके उहि स्थान के मनुष्य के मन के चाहत के हिसाब से कर्मक्षमता जचना पड़ेगा।
अगर इसिकों नजर अंदाज करके-आय की ब्याबस्था-इया उद्दोग किया जाए तो ओह प्रकृति बिपरीत होगा,और नुकसान होगा। जैसे जिस स्थान के लोग कोठोर प्ररिश्रम करने बाले ऊहा अगर IT Hub किया जाए तो ऊसी स्थान के लोगो को शिक्षा देने मे समय लागेगा,किऊ की स्थान के लिए, लोगो की काम करने की मांग होता,अगर बाहर से योग्य लोग आए तो-स्थानीय लोगो की मनमे बिरोध शुरू होगा,और बाहर से जो आएगा उसके भी मन नया परिबेश मे समायोयन होने मे समय लागेगा II  हर इंसान (प्राणी) को आपना क्षेत्र ही पसंद है-बाहर जानेसे ऊसके शरीर ही जाता मन नेही॥ 

आभि इस समशया के हल सोचे तो पीछे से सोचने पड़ेगा-परिबेश परिबर्तन होने से मनुष्य की भी अंदर परिबर्तन होरा-बुद्धि और चिंता की भी बिकश होरहा,स्थान की परिमाण स्थिर...जन शंखा बृद्धि होनेसे युग युग पुराना संग्राम (Intra Specific Struggle) नया-और आधुनिक शिष्टाचार के आबरण पे ही होरहा॥ एक श्रेणी के बिचार धारा – जादा सुबिधा भोग करने कि कारण  सोचने कि –चिंता कि और बुद्धि की बिकाश एक सीमा तक आने के बाद ;  दिन के दिन बुद्धि प्रगति एक निर्दिष्ट स्थान पे रोख गिया । और प्रतिकूल परिबेश पर जीने की क्षमता हरपल कम होने लगा ;  ,(Struggle Against Unfavorable Environment).  और एक श्रेणी के अंदर संग्राम करते करते शरीरके ताकत और बुद्धि की बिकश रफ्तार से बृद्धि होनेलगा।। अन्य श्रेणी शिर्फ उत्पादक की भूमिका निभारहा—साथ मे संग्राम के आंदर जीने के लिए संग्राम से मुक्ति पाने की संग्राम मे लिप्त है॥ एही है आज की बर्तमान समाज ब्याबस्था॥ जो जटिल से जटिल आकार धारण किया॥
 इसलिए समस्त शुभ बुद्धि इंसान से आबेद्न है आज-- बिशेष जरूरत है समस्त मतभेद की आबशान हो इसके ऊपर ज़ोर दीजिये॥ शिक्षा मे बिस्तृत (Details) पड़ने से ही आच्छा होगा-बस्तुगत शिक्षा मन की -बुद्धि की बिकश मौन(Silent) करदेता, और जब मन की बिकाश एक सीमा तक होगा तब चिंन्ताके, भालाबुरा सोचनेके-शक्ति भी कम होने लागेगा। और मनुस्य की आसली उपादान नैतिकता मे-चरित्र मे प्रभाब परेगा॥
 मै भी एही संग्राम मे सामील हु-एही कारण इसके बैज्ञानिक प्रमाण करने की खमता मेरा नेही है। मेरा भी बुद्धि की-बिचार की-भबना की एक सीमा है...इस कारण कुछ भूल होने से हमे आप आपना महान गुण से क्षमा कीजियेगा॥  

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