Saturday, 11 March 2017
Friday, 3 March 2017
“MinD & SocietY”
sree DEBASISH
DASGUPTA
1st PART > ( My old article Psyche )
I have studied a lot of
people and came into elusion which expresses the cause behind the
change in species .
This change depends upon the
mind, due to mental urge of all species. That say, when we see some one and
assume he or she might be Doctor, Teacher or Thief .There are no any map or
picture which express it’s identity, it depends upon his or her work.
According to one’s work, his
or her mentality , thought process changes and it works upon one’s face,
physical structure and body language. And to established the truth its been
revealed that the said people move forward their mind as per need and for this
‘’directional selection’’ their “selfish gene’’ work-out for needed change in
due time. And to express one’s family
back-ground we do refer any of this family’s famous or notorious man –that say
the Doctor’s son or the Criminal’s son. There are no any different gene for
Doctor ,actor or business man; its due to “organic evolution” of ancestors in course of time. Change in
physical, mental and intellectual properties takes place in course of time due
to organic evolution of ancestors. *This change influences the gene too and for
this dominant gene change occurs in a family*.
** [ Development or
abolition of a particular organ of any species depend upon its need and fixed
thinking for livelihood and for this directional selection taken place.]
It been observed that if bad
time comes to any body belongs to rich family in his young hood, his skin could be
thicken and rough, face, due to change
in work habit and mental urge. On the other hand if anybody from poor family
becomes a engineer there must be the same physical change in course of time due
to the same reason .
2nd
Part
As per the physical changes
of gene we can divide the human beings in three category .Though the educated
society thinks that all we are “human being”.
But all species has its own
lifestyle, thought process and food
habits by the mother nature. People’s living desire of different country varies
according to its nature and problems. And development should be done considering
people’s quality, work ability and mental urge .
PAGE-1
As example we see hilly
parrots are quite different from its counter part in plane in food habits,
physical features along with behavior . Like
wise cow,goat and other animals are
different too due to evolution and adaptation.
In the same way human beings
are different in nature according to their living condition in different
places. (1) hard (2) soft and (3) mixed .
(1) The
hard natured man usually has to do hard labour , that’s why they have more
power and diversity in food.
(2) The
soft natured man has simple life,simple food,less power but has good
intelligence ,good reasoning and has greater patience.
(3) The
mixed natured man are of mixed qualities.
And
the struggle between hard and mixed are quite much.To increase pleasure,
opportunity and fortune the mixed type bend their mind way.So,the thought
process and mental development accord
within this orbit,thus the knowledge too. Thats why struggle aginst unfavorable
environment decreases.
To
live in unfavorable environment the hard nature has to struggle for newer
problems and find new ways their knowledge develops. Physical development occur
as per mental need.
The
soft natured has more patience, so they used to play the role of producer, and in
this way they involved into the struggle of freedom from struggle .
In our society some problems are created by
ourselves and are multiplied. Where there peoples are hard-working ,we need to
trained then to make IT hub as if we bring workers from outside,there must be
enmity within the local peoples. And the workers from outside take time to
adopt the new society and environment.
Every
man wants to stay in his own soil,that’s why if he has to go for work to
outside, his physical body goes there but his mind (soul) left behind.
The
evolution of knowledge and thought process of human being changes in
surroundings knowledge and thinking has to be developed.As the lands are
statie,age old “intra specific struggle” should continue.
In
present day education system, educations are specialization oriented,actually
this specialization based education makes “good man” but
it won’t develop the mind (heart).
And when there the mind’s
development is blocked, thought process should be at one level--- and boundary in thinking means development to
certain level. So it must effect the characteristic and above all humanity.
Hence we need to make our
next generation human being not only a good man.
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“मन-समाज-बिकश”
(sree DEBASISH DASGUPTA )
मै लंबे समय तक अनेक इंसान
को अच्छासे अध्धायन करके कुछ निर्णय लिए – इस धरती पे समस्त प्राणी को समय की साथ
जो परीबर्तन होता उसके बड़ा अंश निर्भर करता उहि प्राणिके मानसिक मांग-सोच-बिचार के
ऊपर- मन के ऊपर।। उदारहन के हिसाब से-हमलोग अक्सर बोलता हु,देख—
उह देखनेमे डॉक्टर जैसा,शिक्षक जैसा,चोर जैसा,हमलोग तो कोही चित्र इया नक्सा देखके बोलता नेही,लेकिन
जो जिस क्षेत्र पे काम करता उसके सोच-बिचार-भाबना और मानसिक चिंता ओहि इंसान के
चेहेरे पे शरीर के गठन पे प्रकट होने लागता,परीबर्तन आने लागता॥
लेकिन किउ ऐसे होता?
जब एही प्रश्न मन मे आनेलगा तो मै देखा
उहि सब इंसान अपना मन को जीने की जरूरत के दिशा मे चालित कीयथा-जो निर्देशन बाहक
चुनब (Directional Selection) के लिए उनके अंदर स्वार्थपर जिन (Selfish gene) सही समय पर मन के जरूरत की अनुसार परिबर्तन मे सहायता किया ॥
फिर हमलोग जब कोही मनुष्य के बंश के बारे मे
चर्चा करताहू तब उनके बंश के कोही प्रशिद्ध-इया बुरा पुर्बज की द्रीष्टांत देतहु।
डाक्टर-शिक्षक-नेता-अभिनेता के लिए कोही नया जिन होता नेही-लेकिन हमलोग देखा
पुर्बज के भीतर एही सब गुनके असर अनेबला पीड़ी पर परता। किउ?
किउ की ओहि समय से ही **“जैबबिकश (Organic
Evolution) शुरू होने लगाता। और बादमे उहि सब दोष-गुण जिन के (Dominant Gene) ऊपर प्रभाब डालता,और अनुकरण होने लागता (Adaptation),प्रारम्भ होता नया जिनकी॥ और एहीसे ही शुरू होता इंसान
(प्राणी)के शरीर-मस्तिष्क-बुद्धि की बिकाशमे परिबर्तन॥“**
मैंने देखा एक धनी परिबार के सन्तान किशोर
अबस्था तक शुख भोग किया तब उसके शुन्दर चेहेरा,और जब उनके परिबार के
खाराप समय आया तब उसके शरीर के गठन मे परिबर्तन अनेलागे-धीरेधीरे उनके
चिंता-काम-काज की अनुसार, हातपायरके चमरा,रंग मे भी परिबर्तन होने
लगा॥ फिर इसके उल्टा असर हुया एक गरीब परिबारके संतान जब इंजीनीयर बना तब। बुरा
साथीसे मिलने लगा एक शिक्षित युबा,--गलत उपाय से धनी बना,--शुशील लेडका बास कांटरकटर
बना,तब सब के अंदर परिबर्तन आने लगे। मैने अनेक दोस्त,
रिसतेदार को भी अद्धायन करके देखा एही सब परिबर्तन होता सब के जीने के लिए
चिंता-रास्ता के सन्धान और मनमे आयाहुया स्थायी भाबना के लिए। [ निर्देशन चुनाब (Directional Selection) के लिए। ]
मैने ईसीके आधार पर देखा- आज हमलोग सोचताहु हर “मनुष्य”एक
है और इसके आधार पर आधुनिक समाज गठन किये—लेकिन भूप्रकिती,जीने
के लिए सोच(life style),भाबना,चिंता-मनके चाहत सब के अलग अलग,(Directional Selection)॥
उदारहन के लिए पहाड़ी तोता और समतल की तोता के
खाने मे, चलन मे,ब्याबहार मे अनेक फराक है Evolution and Adaptation के लिए॥ अगर एही मानके देखे तो मनुष्य भी भिन्न
भिन्न होता।
(1) कठिन
प्रकृति (2) नरम प्रकृति (3) संयुक्त प्रकृति।। कठिन प्रकृति-- परिश्रमी,और
शरीर मे शक्ति जादा,भाबुक कम होता। नरम प्रकृति—सरल जीबनयात्रा,सरल
आहार,सहनशील होता। संयुक्त प्रकृति—दोनों गुण के अधिकारी होता॥ अगर
ध्यान से बिचार करू तो प्रिथीबी के हर देश,-हर प्रांत के हर भिन्यता के अनुसार भाग करके उहि
स्थान के मनुष्य के मन के चाहत के हिसाब से कर्मक्षमता जचना पड़ेगा।
अगर इसिकों नजर अंदाज करके-आय की
ब्याबस्था-इया उद्दोग किया जाए तो ओह प्रकृति बिपरीत होगा,और
नुकसान होगा। जैसे जिस स्थान के लोग कोठोर प्ररिश्रम करने बाले ऊहा अगर IT Hub किया जाए तो ऊसी स्थान के लोगो को शिक्षा देने मे समय लागेगा,किऊ
की स्थान के लिए, लोगो की काम करने की मांग होता,अगर
बाहर से योग्य लोग आए तो-स्थानीय लोगो की मनमे बिरोध शुरू होगा,और
बाहर से जो आएगा उसके भी मन नया परिबेश मे समायोयन होने मे समय लागेगा II “हर इंसान (प्राणी) को आपना क्षेत्र ही पसंद है-बाहर
जानेसे ऊसके शरीर ही जाता मन नेही॥“
आभि इस समशया के हल सोचे तो पीछे
से सोचने पड़ेगा-परिबेश परिबर्तन होने से मनुष्य की भी अंदर परिबर्तन होरा-बुद्धि
और चिंता की भी बिकश होरहा,स्थान की परिमाण स्थिर...जन शंखा बृद्धि होनेसे युग
युग पुराना संग्राम (Intra
Specific Struggle) नया-और
आधुनिक शिष्टाचार के आबरण पे ही होरहा॥ एक श्रेणी के बिचार धारा – जादा सुबिधा भोग
करने कि कारण सोचने कि –चिंता कि और
बुद्धि की बिकाश एक सीमा तक आने के बाद ;
दिन के दिन बुद्धि प्रगति एक निर्दिष्ट स्थान पे
रोख गिया । और प्रतिकूल परिबेश पर जीने की क्षमता हरपल कम होने लगा ; ,(Struggle
Against Unfavorable Environment). और एक श्रेणी के अंदर संग्राम करते करते शरीरके
ताकत और बुद्धि की बिकश रफ्तार से बृद्धि होनेलगा।। अन्य श्रेणी शिर्फ उत्पादक की भूमिका
निभारहा—साथ मे संग्राम के आंदर जीने के लिए संग्राम से मुक्ति पाने की संग्राम मे
लिप्त है॥ एही है आज की बर्तमान समाज ब्याबस्था॥ जो जटिल से जटिल आकार धारण किया॥
इसलिए समस्त शुभ बुद्धि इंसान से आबेद्न है आज--
बिशेष जरूरत है समस्त मतभेद की आबशान हो इसके ऊपर ज़ोर दीजिये॥ शिक्षा मे बिस्तृत (Details) पड़ने से ही आच्छा होगा-बस्तुगत शिक्षा मन की -बुद्धि की बिकश
मौन(Silent) करदेता, और जब मन की बिकाश एक सीमा तक होगा तब चिंन्ताके,
भालाबुरा सोचनेके-शक्ति भी कम होने लागेगा। और मनुस्य की आसली उपादान नैतिकता
मे-चरित्र मे प्रभाब परेगा॥
मै भी एही संग्राम मे सामील हु-एही
कारण इसके बैज्ञानिक प्रमाण करने की खमता मेरा नेही है। मेरा भी बुद्धि की-बिचार
की-भबना की एक सीमा है...इस कारण कुछ भूल होने से हमे आप आपना महान गुण से क्षमा कीजियेगा॥
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